कहा सुनी

सेना में आत्मा को मिलता है वेतन और प्रमोशन

1963 का इंडो-चाइना वार आपको पता होगा. उस युद्ध में शहीद होने वाले सिपाहियों में हरभजन सिंह भी एक थे. 1962 के डोगरा रेजिमेंट के जवान हरभजन सिंह भारत-चीन के उस युद्ध में चीन के विरुद्ध युद्ध में शामिल हुए और शहीद हो गए. कहते हैं कि शहीद होने के तीन दिनों तक उनकी लाश भारतीय आर्मी को नहीं मिली और उनके किसी साथी जवान के सपने में उन्होंने अपने मृत शरीर की जगह बताई थी. उसके बाद पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया. लेकिन उसके बाद भी हरभजन सिंह ने अपनी आर्मी ड्यूटी से मुंह नहीं मोड़ा और बाबा बन गए. कैसे? यह भी एक मनोरंजक कहानी है |

कहते हैं कि भारत-चीन के उस युद्ध के विषय में भी हरभजन सिंह ने अपनी साथी जवानों को पहले ही बता दिया था. शहादत के बाद युद्ध इंडो-चाइना युद्ध समाप्ति के बाद ऐसा कहा जाता है कि अपने किसी साथी जवान के सपने में आकर हरभजन सिंह ने अपनी समाधि पर एक मंदिर बनाने की बात कही. उनके कहे अनुसार हरभजन सिंह की समाधि पर एक मंदिर बनाया गया. तब से हरभजन सिंह भारतीय सेना की इस रेजिमेंट के लिए ‘बाबा’ बन गए. यहां की रेजिमेंट के लिए हरभजन सिंह उर्फ ‘बाबा’ आज भी सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और भारतीय सेना वेतन समेत सेना में रहते हुए मिलने वाली सभी सुविधाएं बाबा को दे रही है जिसे सुनकर कोई भी अपने दांतों तले अंगुली दबा ले |

कहते हैं कि भारत-चीन के उस युद्ध के विषय में भी हरभजन सिंह ने अपनी साथी जवानों को पहले ही बता दिया था. शहादत के बाद युद्ध इंडो-चाइना युद्ध समाप्ति के बाद ऐसा कहा जाता है कि अपने किसी साथी जवान के सपने में आकर हरभजन सिंह ने अपनी समाधि पर एक मंदिर बनाने की बात कही. उनके कहे अनुसार हरभजन सिंह की समाधि पर एक मंदिर बनाया गया. तब से हरभजन सिंह भारतीय सेना की इस रेजिमेंट के लिए ‘बाबा’ बन गए. यहां की रेजिमेंट के लिए हरभजन सिंह उर्फ ‘बाबा’ आज भी सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और भारतीय सेना वेतन समेत सेना में रहते हुए मिलने वाली सभी सुविधाएं बाबा को दे रही है जिसे सुनकर कोई भी अपने दांतों तले अंगुली दबा ले |


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